अभ्यास के सभी प्रश्नोत्तर
(i). प्रदेशीय नियोजन का संबंध है-
(क) आर्थिक व्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों का विकास
(ख) क्षेत्र विशेष के विकास का उपागम
(ग) परिवहन जाल तंत्र में क्षेत्रीय अंतर
(घ) ग्रामीण क्षेत्रों का विकास
उत्तर-(ख) क्षेत्र विशेष के विकास का उपागम
(क) समन्वित पर्यटन विकास प्रोग्राम
(ख) समन्वित यात्रा विकास प्रोग्राम
(ग) समन्वित जनजातीय विकास प्रोग्राम
(घ) समन्वित परिवहन विकास प्रोग्राम
उत्तर-(ग) समन्वित जनजातीय विकास प्रोग्राम
(क) कृषि विकास
(ख) पारितंत्र विकास
(ग) परिवहन विकास
(घ) भूमि उपनिवेशन
उत्तर- (ख) पारितंत्र विकास
(I) भरमौर जनजाति क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के सामाजिक लाभ क्या हैं ?
उत्तर- 1974 में पांचवी पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश के भरमौर क्षेत्र को समन्वित जनजातीय विकास परियोजना(I.T.D.P) का दर्जा मिला। इस क्षेत्र में जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना का सबसे महत्वपूर्ण योगदान विद्यालयों, जन स्वास्थ सुविधाओं, पेयजल, सड़कों, संचार और विद्युत के रूप में अवसंरचना विकास है। इस कार्यक्रम के लागू होने से हुए सामाजिक लाभों में साक्षरता दर में तेजी से वृद्धि, लिंगानुपात में सुधार और बाल-विवाह में कमी शामिल हैं। यहाँ स्त्री साक्षरता 1971 में 1.88% से बढ़कर 2011 में 65% हो गई। स्त्री और पुरुष साक्षरता के मध्य अंतर भी कम हुआ है।
उत्तर- संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा बनाए गए ‘विश्व पर्यावरण और विकास आयोग’ ने अपनी रिपोर्ट ‘अवर कॉमन फ्यूचर'(ब्रंटलैंड रिपोर्ट) 1987 में प्रस्तुत की थी। इसके अनुसार सतत पोषणीय विकास का अर्थ है- ‘एक ऐसा विकास जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना।’
विकास की सतत पोषणीय अवधारणा में पर्यावरण रक्षा को भी ध्यान में रखा गया है।
उत्तर- इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र के प्रथम चरण में सिंचाई की शुरुआत 1960 के दशक में आरंभ हुई जबकि दूसरे चरण में 1980 के दशक के मध्य में सिंचाई आरंभ हुई।
सिंचाई के सकारात्मक प्रभाव-
1)नहर सिंचाई के प्रसार ने इस शुष्क क्षेत्र की पारिस्थितिकी, अर्थव्यवस्था और समाज को रूपांतरित कर दिया है।
2) लंबी अवधि तक मृदा नमी उपलब्ध होने और कमान क्षेत्र विकास के तहत शुरू किए गए वनीकरण और चरागाह विकास कार्यक्रमों से यहाँ भूमि हरी-भरी हो गई है।
3) इस क्षेत्र में पारंपरिक फसलों का स्थान मूंगफली, कपास, गेहूँ और चावल ने ले लिया है।
4) नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र के विस्तार से बोए गए क्षेत्र में विस्तार हुआ है और फसलों की सघनता में वृद्धि हुई है।
5) इसमें कोई संदेह नहीं कि यहाँ सघन सिंचाई से आरंभ में कृषि और पशुधन उत्पादकता में अत्यधिक वृद्धि हुई।
(I) सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। यह कार्यक्रम देश में शुष्क भूमि कृषि विकास में कैसे सहायक है?
उत्तर- सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम-
1)इस कार्यक्रम की शुरुआत चौथी पंचवर्षीय योजना में हुई।
2) इसका उद्देश्य सूखा संभावित क्षेत्रों में लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना और सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना है।
3) पांचवी पंचवर्षीय योजना में इसके कार्य क्षेत्र को और विस्तृत किया गया।
4) प्रारंभ में इस कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे सिविल निर्माण कार्यों पर बल दिया गया जिनमें अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है।
5) बाद में सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास कार्यक्रमों, वनीकरण, चरागाह विकास और आधारभूत ग्रामीण अवसंरचना जैसे विद्युत, सड़कों, बाजार, ऋण सुविधाओं और सेवाओं पर जोर दिया गया।
देश में शुष्क भूमि कृषि विकास में सहायक–
1967 में योजना आयोग ने देश के 67 जिलों की पहचान सूखा संभावित जिलों के रूप में की थी। 1972 में सिंचाई आयोग ने 30% सिंचित क्षेत्र का मापदंड लेकर सूखा संभावी क्षेत्रों का परिसीमन किया।भारत में सूखा संभावित क्षेत्र राजस्थान, गुजरात,मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक और तमिलनाडु के शुष्क क्षेत्रों में फैले हुए हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान के सूखा प्रभावित क्षेत्र सिंचाई के प्रसार के कारण सूखे से बच जाते हैं।
पिछले क्षेत्रों के विकास की राष्ट्रीय समिति ने इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन की समीक्षा की जिसमें पाया गया कि
क) कार्यक्रम मुख्यतः कृषि और उससे जुड़े सेक्टरों के विकास तक ही सीमित है और पर्यावरण संतुलन पुनः स्थापन पर इसमें विशेष बल दिया गया।
ख) जनसंख्या वृद्धि के कारण लोग कृषि के लिए सीमांत भूमि का उपयोग करने के लिए मजबूर हैं जिससे पारिस्थितिकी निम्नीकरण हो रहा है अतः सूखा संभावित क्षेत्रों में वैकल्पिक रोजगार अवसर पैदा करने की आवश्यकता है।
ग) इन क्षेत्रों का विकास करने की अन्य रणनीतियों में सूक्ष्म स्तर पर समन्वित जल संभर विकास कार्यक्रम अपनाना शामिल है। सूखा संभावित क्षेत्रों के विकास की रणनीति में जल, मिट्टी, पौधों, मानव,पशुधन के बीच पारिस्थितिकी संतुलन पुनःस्थापन पर मुख्य रुप से ध्यान दिया जाना चाहिए।
उत्तर- इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए मुख्य रूप से पारिस्थितिकीय सतत पोषणीयता पर बल देना होगा। इस क्षेत्र में सतत पोषणीयता को बढ़ावा देने के लिए निम्न उपाय सुझाए गए हैं-
1) कमान क्षेत्र में जल प्रबंधन नीति पर कठोरता से अमल करना होगा। इस परियोजना के प्रथम चरण में फसल रक्षण सिंचाई और दूसरे चरण में फसल उगाने और चरागाह विकास के लिए विस्तारित सिंचाई का प्रावधान है।
2) इस क्षेत्र में जल सघन फसलों की जगह किसानों को बागानी कृषि के अंतर्गत खट्टे फलों की खेती करनी चाहिए।
3) कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रमों जैसे नालों को पक्का करना,भूमि विकास तथा समतलन, पानी की वारबंदी (ओसरा)पद्धति प्रभावी रूप से कार्यान्वित की जाए ताकि बहते जल की हानि मार्ग में कम हो सके।
4) जलाक्रांतता तथा लवण से प्रभावित भूमि का पुनरुद्धार किया जाए।
5) वनीकरण, वनों की रक्षक मेखला का निर्माण और चरागाह विकास पारितंत्र विकास के लिए अति आवश्यक है।
6) सामाजिक सतत पोषणीयता का लक्ष्य हासिल करने के लिए जरूरी है कि निर्धन भू- आवंटियों को कृषि के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्तीय और संस्थागत सहायता उपलब्ध करवाई जाए।
7) कृषि के साथ-साथ अन्य सेक्टरों/क्रियाकलापों को भी साथ विकसित करना पड़ेगा जिससे आर्थिक विविधता होगी और गांवों तथा विपणन केंद्रों के बीच प्रकार्यात्मक संबंध स्थापित होगा।