अभ्यास के सभी प्रश्नोत्तर
(i). इनमें से भारत के किस राज्य में बाढ़ अधिक आती है ?
(क) बिहार
(ख) पश्चिम बंगाल
(ग) असम
(घ) उत्तर प्रदेश
उत्तर-(ग) असम
(क) बागेश्वर
(ख) चंपावत
(ग) अल्मोड़ा
(घ) पिथौरागढ़
उत्तर-(घ) पिथौरागढ़
(क) असम
(ख) पश्चिम बंगाल
(ग) केरल
(घ) तमिलनाडु
उत्तर-(घ) तमिलनाडु
(क) गंगा
(ख) ब्रह्मपुत्र
(ग) गोदावरी
(घ) सिंधु
उत्तर-(ख) ब्रह्मपुत्र
(क) वायुमंडलीय
(ख) जलीय
(ग) भौमिकी
(घ) जीवमंडलीय
उत्तर-(क) वायुमंडलीय
(I) संकट किस दिशा में आपदा बन जाता है?
उत्तर- संकट वे प्राकृतिक तथा मानवीय तत्व हैं जिनसे जन-धन को हानि पहुंचने का खतरा बना रहता हैं।यह पर्यावरण विशेष के स्थायी पक्ष भी हो सकते हैं। जैसे- नदी किनारे रहने वाले लोगों के लिए बाढ़ का संकट रहता है।
संकट की तुलना में आपदा अपेक्षाकृत तेजी से घटित होती है तथा बड़े पैमाने पर जन-धन की हानि तथा सामाजिक तंत्र व जीवन को प्रभावित करते हैं।इन पर लोगों का बहुत कम या कुछ भी नियंत्रण नहीं होता। जैसे- भूकंप, बाढ़, सुनामी आदि।
उत्तर- हिमालय और भारत का उत्तर- पूर्वी क्षेत्र भूकंप के अत्यधिक क्षति वाले जोन(V) में आता है। इंडो-आस्ट्रेलियन प्लेट प्रतिवर्ष उत्तर एवं उत्तर- पूर्व दिशा में 1 सेंटीमीटर खिसक रही है परंतु उत्तर में यूरेशियाई प्लेट इसके लिए अवरोध पैदा करती है। इनके टकराने से प्लेटों के किनारे लाॅक हो जाते हैं और कई स्थानों पर लगातार ऊर्जा संग्रह होता रहता है अधिक मात्रा में ऊर्जा संग्रह से तनाव बढ़ता रहता है और दोनों प्लेटों के बीच लाॅक टूट जाता है और एकाएक ऊर्जा मोचन से हिमालय और भारत के उत्तर- पूर्वी क्षेत्र में भूकंप आते हैं।
उत्तर- उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति के लिए निम्नलिखित प्रारंभिक परिस्थितियों का होना आवश्यक है-
1) लगातार और पर्याप्त मात्रा में उष्ण व आर्द्र वायु की सतत् उपलब्धता जिससे बहुत बड़ी मात्रा में गुप्त ऊष्मा निर्मुक्त हो।
2) तीव्र कोरियोलिस बल जो केंद्र के निम्न वायुदाब को भरने न दे।
3) क्षोभमंडल में अस्थिरता जिससे स्थानीय स्तर पर निम्न वायुदाब क्षेत्र बन जाते हैं। इन्हीं के चारों ओर चक्रवात भी विकसित हो सकते हैं।
4)मजबूत ऊर्ध्वाधर वायु फान(wedge) की अनुपस्थिति जो नम और गुप्त ऊष्मायुक्त वायु के ऊर्ध्वाधर बहाव को अवरुद्ध करें।
उत्तर- पूर्वी भारत की बाढ़ के आने का मुख्य कारण वर्षा ऋतु में नदी- नालों में अत्यधिक जल प्रवाह होता है जिससे नदी-नाले उफान पर होते हैं और आसपास की मानव बस्ती व जमीन पर जल खड़ा हो जाता है। लगभग प्रतिवर्ष असम,पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में यही मुख्य कारण है। इसके विपरीत पश्चिमी भारत में राजस्थान, गुजरात जैसे राज्यों में कभी- कभार आकस्मिक बाढ़ की घटनाएँ होती है जिसका मुख्य कारण बादल फटना या लगातार कई घंटे तक अधिक वर्षा का होना रहा है।
उत्तर-पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे अधिक पड़ने के कई कारण हैं-
1) मानसूनी वर्षा की कम अवधि तथा वृष्टि छाया क्षेत्र।
2) मरुस्थलीय एवं पठारीय स्थलाकृति जहाँ भूमिगत जल की कमी या खराब गुणवत्ता है ।
3) सदावाहिनी नदियों का अभाव।
4) सिंचित कृषि क्षेत्र कम होने के कारण अनाज व चारे का कम उत्पादन।
(I) भारत में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करें और इस आपदा के निवारण के कुछ उपाय बताएं।
उत्तर- भूस्खलन वह आपदा है जिसमें पहाड़ी क्षेत्रों में चट्टानों का मलबा ढा़ल से खिसक कर नीचे गिरता है और जन-धन की हानि हो सकती है। विभिन्न अनुभवों, इसकी बारंबारता और इसके कारकों के आधार पर भारत को कई भूस्खलन क्षेत्रों में बांटा गया है जो इस प्रकार है:-
1) अत्यधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्र–
इसमें हिमालय की युवा पर्वत श्रेणियाँ, अंडमान -निकोबार, पश्चिमी घाट और नीलगिरी में अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर- पूर्वी क्षेत्र भूकंप प्रभावित क्षेत्र तथा अत्यधिक मानवीय क्रियाकलापों वाले क्षेत्र रखे जाते हैं।
2) अधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्र –
इसमें हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तर-पूर्वी भारत (असम को छोड़कर) शामिल है।
3) मध्यम और कम सुभेद्यता वाले क्षेत्र-
इसके अंतर्गत लद्दाख, हिमाचल प्रदेश में लाहोल-स्पीति, अरावली पहाड़ियों में कम वर्षा वाला क्षेत्र,पूर्वी घाट, दक्कन पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र आदि आते हैं। इसके अलावा झारखंड , ओड़िसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में खदानों और भूमि धँसने से भूस्खलन होता रहता है।
4) अन्य क्षेत्र-
राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल(दार्जिलिंग जिले को छोड़कर), असम (कार्बी आंगलोंग को छोड़कर) और दक्षिण प्रांतों के तटीय क्षेत्र भूस्खलनयुक्त है।
भूस्खलन से निपटने के उपाय-
भूस्खलन से निपटने के उपाय अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग होने चाहिए।
1) अधिक भूस्खलन संभावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बांध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा विकास कार्यों पर प्रतिबंध।
2) बड़े पैमाने पर वनीकरण को बढ़ावा देना ।
3) जल बहाव को कम करने के लिए रोक बांधों का निर्माण।
4) स्थानांतरित कृषि वाले क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि करना।
5) इन क्षेत्रों में घरों के चारों ओर प्रतिरक्षा दीवार का निर्माण।
6) अवैध निर्माण कार्यों पर रोक।
7) उचित जल निकास प्रणाली।
8) पहाड़ी क्षेत्रों की उपग्रहों के माध्यम से निरंतर निगरानी।
उत्तर- सुभेद्यता–
किसी आपदा से कोई क्षेत्र कितना प्रभावित होगा या हो सकता है, यह उस क्षेत्र के लिए आपदा की सुभेद्यता है।
सूखा ऐसी स्थिति है जिसमें भोजन,चारे तथा जल का अकाल हो सकता है। हमारे देश का लगभग 30% क्षेत्र सूखे से प्रभावित हो सकता है। भारत के कुछ क्षेत्रों में बार-बार सूखा पड़ता है।
सूखे की तीव्रता के आधार पर देश को निम्नलिखित क्षेत्रों में बाँटा गया है-
1) अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र–
राजस्थान में अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थलीय भाग तथा गुजरात का कच्छ क्षेत्र अत्यधिक सूखा प्रभावित है। इसमें राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिले भी शामिल हैं जहाँ 10 सेंटीमीटर से भी कम वार्षिक वर्षा होती है।
2) अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-
इसमें राजस्थान के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के ज्यादातर भाग, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, आंध्र प्रदेश के अंदरूनी भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु के उत्तरी भाग, झारखंड का दक्षिणी भाग और उड़ीसा का आंतरिक भाग शामिल है।
3) मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र-
इस वर्ग में राजस्थान के उत्तरी भाग, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले, गुजरात के बचे हुए जिले, कोंकण को छोड़कर महाराष्ट्र, झारखंड, तमिलनाडु में कोयंबटूर पठार और आंतरिक कर्नाटक शामिल है।
4) अन्य क्षेत्र-
भारत के बचे हुए भाग बहुत कम या न के बराबर सूखे से प्रभावित है।
सूखा निवारण के उपाय-
सामाजिक और प्राकृतिक पर्यावरण पर सूखे का प्रभाव तात्कालिक और दीर्घकालिक होता है। इसलिए सूखे से निपटने के लिए तैयार की जा रही योजनाओं को उन्हें ध्यान में रखकर बनाना चाहिए।
तात्कालिक उपाय-
सूखे की स्थिति में सहायता पहुंचाने के लिए तुरंत किए जाने वाले उपाय इसमें शामिल हैं जैसे-
1)सुरक्षित पेयजल वितरण
2) पशुओं के लिए चारे और जल की उपलब्धता 3)दवाइयां उपलब्ध कराना
4) लोगों तथा पशुओं को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना
दीर्घकालिक उपाय-
1) सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भूमिगत जल भंडारों का पता लगाना।
2) नदियों को जोड़ना ताकि जल की अधिकता वाले क्षेत्रों से जल की कमी वाले क्षेत्रों में जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो।
3) बाँध एवं जलाशयों का निर्माण।
4) सूखा प्रतिरोधी फसलों के बारे में प्रचार-प्रसार।
5) वर्षा जल संग्रहण को अपनाना।
उत्तर- लंबे समय तक भौगोलिक साहित्य में आपदाओं को प्राकृतिक बलों का परिणाम माना जाता रहा है और मानव को इनका शिकार। परंतु प्राकृतिक बल ही आपदाओं के एकमात्र कारक नहीं है अपितु इनकी उत्पत्ति का संबंध मानवीय क्रियाकलापों से भी है। विभिन्न स्थितियों में विकास कार्य भी आपदा का कारण बन सकते हैं-
1) कुछ मानवीय गतिविधियाँ तो सीधे रूप से इन आपदाओं के लिए उत्तरदायी हैं जैसे- भोपाल गैस त्रासदी, चेरनोबिल नाभिकीय आपदा, क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैसों का वायुमंडल में छोड़ना आदि।
2) कई बार मानवीय विकास के कई कार्य अप्रत्यक्ष रूप से आपदाओं को निमंत्रण देते हैं जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े बांधों का निर्माण।
3) वनों को काटने की वजह से भूस्खलन और बाढ़।
4) भंगुर जमीन पर निर्माण कार्य और अवैज्ञानिक भूमि उपयोग कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनकी वजह से आपदा परोक्ष रूप में हमें प्रभावित करती है।
5) तकनीकी विकास ने मानव को पर्यावरण को प्रभावित करने की बहुत क्षमता प्रदान कर दी है जिसके परिणाम स्वरुप मनुष्य ने आपदा के खतरे वाले क्षेत्रों में गहन क्रियाकलाप शुरू कर दिया और इस प्रकार आपदाओं की सुभेद्यता को बढ़ा दिया है।
यह सर्वमान्य है कि पिछले कुछ सालों से मानव कृत आपदाओं की संख्या और परिमाण दोनों में ही वृद्धि हुई है और कई स्तर पर ऐसी घटनाओं से बचने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं।