अभ्यास के सभी प्रश्नोत्तर
(i).जाड़े के आरंभ में तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में वर्षा किस कारण होती है ?
(क) दक्षिण-पश्चिमी मानसून
(ख) उत्तर-पूर्वी मानसून
(ग) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात
(घ) स्थानीय वायु परिसंचरण
उत्तर-(ख) उत्तर-पूर्वी मानसून
(क) आधा
(ख) दो- तिहाई
(ग) एक-तिहाई
(घ) तीन- चौथाई
उत्तर-(ग) एक-तिहाई
नोट- उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर कई जगह (घ)तीन- चौथाई भी मिलता है किन्तु नवीनतम एनसीईआरटी की पुस्तक के इस चौथे अध्याय (जलवायु) में उपलब्ध वार्षिक वर्षा संबंधी मानचित्र 4.11 तथा अन्य मानचित्रों के अवलोकन से साफ पता चलता है कि देश का काफी बड़ा भाग 100 cm से अधिक औसत वार्षिक वर्षा प्राप्त करता है अतः (ग) एक-तिहाई ही सटीक उत्तर है ।
(क) यहाँ दैनिक तापांतर कम होता है।
(ख) यहाँ वार्षिक तापांतर कम होता है।
(ग) यहाँ तापमान सारा वर्ष ऊँचा रहता है।
(घ) यहाँ जलवायु विषम पाई जाती है।
उत्तर- (घ) यहाँ जलवायु विषम पाई जाती है।
(क) उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान कम होने के कारण उच्च वायुदाब विकसित हो जाता है।
(ख) उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान बढ़ने के कारण निम्न वायुदाब विकसित हो जाता है।
(ग) उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान और वायुदाब में कोई परिवर्तन नहीं आता।
(घ) उत्तर-पश्चिमी भारत में झुलसा देने वाली तेज लू चलती है।
उत्तर-(क) उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान कम होने के कारण उच्च वायुदाब विकसित हो जाता है।
(क) केरल और तटीय कर्नाटक में
(ख) अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में
(ग) कोरोमंडल तट पर
(घ) असम व अरुणाचल प्रदेश में
उत्तर-(ग) कोरोमंडल तट पर
(I) भारतीय मौसम तंत्र को प्रभावित करने वाले तीन महत्वपूर्ण कारक कौन- से हैं?
उत्तर- (1) स्थान की अक्षांशीय स्थिति (2) समुद्र तट से दूरी (3) समुद्र तल से ऊँचाई(4) उच्चावच
उत्तर- विषुवत वृत्त पर स्थित यह एक निम्न वायुदाब क्षेत्र है जहाँ दोनों गोलार्धों से आने वाली व्यापारिक पवनें मिलती हैं। इसे मानसूनी गर्त भी कहा जाता है।
जुलाई के महीने में अंतः उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) 20° से 25° उत्तरी अक्षांश पर खिसक कर गंगा के मैदान पर स्थित हो जाता है और दक्षिण-पश्चिम मानसून की स्थिति बनती है।
शीत ऋतु में आई॰टी॰सी॰जेड॰ दक्षिण की ओर खिसक जाता है और मानसून पवनों की दिशा बदल कर उत्तर-पूर्वी मानसून हो जाती है।
उत्तर-दक्षिण- पश्चिम मानसून की ऋतु में वर्षा अचानक आरंभ हो जाती है। वर्षा होने से तापमान काफी गिर जाता है। प्रचंड गर्जन और बिजली की कड़क के साथ इन आर्द्रता भरी पवनों का अचानक चलना प्रायः मानसून प्रस्फोट कहलाता है।
मेघालय की खासी पहाड़ियों में स्थित माॅसिनराम भारत तथा विश्व में सर्वाधिक औसत वार्षिक वर्षा प्राप्त करता है।
उत्तर-मौसम तथा जलवायु के तत्वों एवं दशाओं में क्षेत्रीय भिन्नताएँ मिलती है जिसके आधार पर विश्व के अलग-अलग जलवायु प्रदेश वर्गीकृत किए जाते हैं। किसी भी जलवायु प्रदेश में जलवायविक दशाओं की समरूपता पाई जाती हैं जो जलवायु के कारकों के संयुक्त प्रभाव से उत्पन्न होती है।
तापमान और वर्षा जलवायु के दो महत्वपूर्ण तत्व हैं जिनके आधार पर कोपेन ने विश्व के जलवायु प्रदेशों का वर्गीकरण किया है। कोपेन ने जलवायु वर्गीकरण का आधार तापमान और वर्षण के मासिक मानों को रखा है।
उत्तर-उत्तर पश्चिम भारत में रबी की फसलें बोने वाले किसानों को पश्चिमी विक्षोभों से वर्षा प्राप्त होती है। यह एक प्रकार के शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात हैं।
पश्चिमी विक्षोभ कहे जाने वाले यह चक्रवात भूमध्य सागर पर उत्पन्न होते हैं और और पूर्व की ओर चलते हुए पश्चिम एशिया, ईरान अफगानिस्तान और पाकिस्तान को पार करते हुए भारत के उत्तर- पश्चिमी भागों में पहुंचते हैं और वर्षण करते हैं जो रबी की फसलों के लिए काफी लाभदायक होती है।
(I) जलवायु में एक प्रकार का ऐक्य होते हुए भी भारत की जलवायु में क्षेत्रीय विभिन्नताएँ पाई पाई जाती हैं। उपयुक्त उदाहरण देते हुए इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- सामान्य तौर पर भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है किंतु भारत के विशाल विस्तार के कारण उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम जलवायु में क्षेत्रीय विभिन्नताएँ पाई जाती हैं जो निम्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट है-(1) थार मरुस्थल में स्थित राजस्थान के चुरू जिले में जून के महीने में किसी एक दिन तापमान 50° सेल्सियस या इससे अधिक हो जाता है जबकि उसी दिन अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में तापमान मुश्किल से 19° सेल्सियस तक पहुँचता है।
(2) दिसंबर की किसी रात में लद्दाख के द्रास में तापमान -45° सेल्सियस तक गिर जाता है जबकि उसी रात तिरुअनंतपुरम अथवा चेन्नई में तापमान 20° सेल्सियस या 22° सेल्सियस रहता है।
(3) मेघालय की खासी पहाड़ियों में स्थित चेरापूंजी और माॅसिनराम में औसत वार्षिक वर्षा 1080 सेंटीमीटर से अधिक होती है जबकि राजस्थान के जैसलमेर में औसत वार्षिक वर्षा 20 सेंटीमीटर से भी कम होती है।
(4) मेघालय की गारो पहाड़ियों में स्थित तुरा में एक दिन में इतनी वर्षा हो जाती है जितनी जैसलमेर में 10 वर्षों में। उत्तर पश्चिमी हिमालय तथा थार मरुस्थल में वार्षिक वर्षा 20 सेंटीमीटर से भी कम होती है जबकि उत्तर-पूर्व में स्थित मेघालय में 400 सेंटीमीटर से भी अधिक वार्षिक वर्षा होती है।
उत्तर-परंपरागत रूप से भारत को वर्ष में छह ऋतुओं में बाँटा जाता है। बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर- 6 परंपरागत ऋतुएँ हैं जो उत्तर भारत में ज्यादा स्पष्ट हैं।मौसम वैज्ञानिक भारत में वर्ष को चार ऋतुओं में बाँटते हैं जो इस प्रकार है –
(1) शीत ऋतु
(2) ग्रीष्म ऋतु
(3) दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की ऋतु
(4) मानसून के निवर्तन की ऋतु
शीत ऋतु–
आमतौर पर उत्तर भारत में शीत ऋतु नवंबर के मध्य में प्रारंभ होती हैं। जनवरी और फरवरी सर्वाधिक ठंडे महीने होते हैं। इस समय भारत के अधिकांश स्थानों पर औसत दैनिक तापमान 21° सेल्सियस से कम रहता है। रात्रि का तापमान काफी कम हो जाता है जो पंजाब एवं राजस्थान में 0° सेल्सियस से नीचे भी चला जाता है। हिमालय पर्वत श्रेणियों में हिमपात होने से शीतलहर की स्थिति बनती है और देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में पाला व कोहरा भी पड़ता है।
प्रायद्वीपीय भारत में कोई निश्चित शीत ऋतु नहीं होती। तटीय भागों में समुद्र के समकारी प्रभाव तथा भूमध्य रेखा से निकटता होने के कारण औसत तापमान उच्च बना रहता है। पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में तापमान अपेक्षाकृत कम पाया जाता है।
दिसंबर में सूर्य मकर रेखा पर लंबवत होता है। इसलिए इस समय उत्तरी मैदान पर उच्च वायुदाब विकसित होता है जबकि समुद्रों पर निम्न वायुदाब होता है। कम दाब प्रवणता के कारण 3 से 5 किलोमीटर प्रति घंटे की दर से मंद पवनें चलने लगती हैं।
इस समय उत्तर पश्चिमी भारत में पश्चिमी विक्षोभ के कारण वर्षा तथा हिमपात होता है जो भूमध्य सागर पर उत्पन्न होते हैं। यह वर्षण रबी की फसलों के लिए काफी लाभदायक माना जाता है।इस समय लौटती हुई मानसून पवनें बंगाल की खाड़ी से गुजरते समय जलवाष्प ग्रहण कर लेती हैं और पूर्वी घाट से टकराकर कोरोमंडल क्षेत्र में अक्टूबर से दिसंबर के मध्य वर्षा करती हैं। देश के अन्य भागों में इस ऋतु में वर्षा कम होती है।