अभ्यास के सभी प्रश्नोत्तर
(i). निम्नलिखित में से कौन-सी नदी ‘बंगाल का शोक’ के नाम से जानी जाती थी?
(क) गंडक
(ख) कोसी
(ग) सोन
(घ) दामोदर
उत्तर- (घ) दामोदर
(क) सिंधु
(ख) ब्रह्मपुत्र
(ग) गंगा
(घ) कृष्णा
उत्तर-(ग) गंगा
(क) रावी
(ख) सिंधु
(ग) चेनाब
(घ) झेलम
उत्तर- (ख) सिंधु
(क) सोन
(ख) यमुना
(ग) नर्मदा
(घ) लूनी
उत्तर-(ग) नर्मदा
(क) विष्णु प्रयाग
(ख) रुद्र प्रयाग
(ग) कर्ण प्रयाग
(घ) देव प्रयाग
उत्तर-(घ) देव प्रयाग
(i) नदी द्रोणी और जल- संभर।
उत्तर- नदी द्रोणी और जल- संभर में अंतर इस प्रकार है-नदी द्रोणी–
1)बड़ी नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी(river basin) कहते हैं।
2)नदी द्रोणी का आकार बड़ा होता है।
जल- संभर–
1)छोटी नदियों तथा नालों के अपवाहित क्षेत्र को जल संभर(watershed) कहा जाता है।
2)जल- संभर का आकार छोटा होता है।
उत्तर- वृक्षाकार और जालीनुमा अपवाह प्रारूप में अंतर इस प्रकार है- वृक्षाकार अपवाह प्रारूप-
जो अपवाह प्रतिरूप पेड़ की शाखाओं जैसा दिखाई देता है उसे वृक्षाकार प्रतिरूप कहते हैं।जैसे- उत्तरी मैदान की नदियाँ।
जालीनुमा अपवाह प्रारूप–
जब मुख्य नदियाँ एक दूसरे के समानांतर बहती हैं तथा सहायक नदियां उनसे समकोण पर मिलती हों तो ऐसे प्रतिरूप को जालीनुमा अपवाह प्रारूप कहते हैं।

उत्तर- अपकेंद्रीय और अभिकेंद्रीय अपवाह प्रारूप में अंतर इस प्रकार है-
अपकेंद्रीय अपवाह प्रारूप–
जब नदियांँ किसी पर्वत से निकलकर सभी दिशाओं में बहती है तो इसे अरीय प्रतिरूप या अपकेंद्रीय प्रतिरूप कहा जाता है। अमरकंटक पर्वत श्रृंखला से निकलने वाली नदियाँ इस अपवाह प्रतिरूप के अच्छे उदाहरण हैं।
अभिकेंद्रीय अपवाह प्रारूप-
जब सभी दिशाओं से नदियांँ बह कर किसी झील या गर्त में विसर्जित होते हैं तो ऐसे अपवाह प्रतिरूप को अभिकेंद्रीय प्रतिरूप कहते हैं। राजस्थान में सांभर झील में आकर गिरने वाले नदी- नाले अभिकेंद्रीय प्रतिरूप का अच्छा उदाहरण है।
उत्तर- डेल्टा और ज्वारनदमुख में अंतर इस प्रकार है।डेल्टा– समुद्र या महासागर में गिरने से पहले नदियाँ कई धाराओं में बँट जाती हैं तथा अपने साथ लाए हुए निक्षेप को जमा करती हैं। इस प्रकार लगातार हजारों वर्षों तक नदी के मुहाने पर जमा हुए प्रायः त्रिभुजाकार निक्षेप को डेल्टा(ग्रीक भाषा का अक्षर-Δ) कहा जाता है।
ज्वारनदमुख– ज्वारनदमुख समुद्र के जल में डूबी हुई नदी घाटियांँ हैं जहाँ खारे तथा ताजे जल का मिश्रण मिलता है। समुद्र तल के उत्थान या नदी घाटी के अवतलन के कारण जब समुद्र का जल नदी के मुहाने पर कुछ दूर तक अंदर प्रवेश कर जाता है तो इस प्रकार की आकृति को ज्वारनदमुख कहते हैं। समुद्री लहरों के क्रियाशील होने के कारण इन क्षेत्रों में डेल्टा जमाव नहीं मिलते।
(I) भारत में नदियों को आपस में जोड़ने के सामाजिक- आर्थिक लाभ क्या है?
उत्तर- भारत में नदियों का आपस में जोड़ने के कई सामाजिक-आर्थिक लाभ हो सकते हैं जैसे-
1) जल की कमी वाले क्षेत्रों में जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकती है। इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी।
2) देश के अलग-अलग हिस्सों में एक ही समय आने वाली बाढ़ तथा सूखे जैसी आपदाओं में कमी हो सकती हैं क्योंकि आवश्यकतानुसार जल की अधिकता वाली नदियों से दूसरे क्षेत्रों में जल भेजा जा सकता है।
3) देश के सभी भागों में सभी मौसम में पर्याप्त पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है।
उत्तर- प्रायद्वीपीय नदियों के तीन प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-1) प्रायद्वीपीय नदियाँ छोटे तथा सुनिश्चित मार्ग पर चलती हैं और विसर्प नहीं बनाती हैं।
2) अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी हैं तथा मानसूनी वर्षा पर निर्भर हैं।
3) ये प्रौढ़ नदियाँ हैं जो अपने आधार तल तक जा पहुँची हैं।
(I) उत्तर भारतीय नदियों की महत्वपूर्ण विशेषताएँ क्या हैं? ये प्रायद्वीपीय नदियों से किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर- भारत के नदी तंत्र को प्रायः दो भागों में विभाजित किया जाता है- (1)हिमालय अपवाह तंत्र अथवा उत्तर भारतीय नदियाँ तथा (2) प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र या प्रायद्वीपीय नदियाँ।
इन दोनों नदी तंत्रों की तुलना करते हुए हम जानते हैं कि उत्तर भारतीय नदियों की महत्वपूर्ण विशेषताएँ क्या हैं तथा वे प्रायद्वीपीय नदियों से किस प्रकार भिन्न हैं।
हिमालयी व प्रायद्वीपीय नदियों की तुलना-हिमालयी नदियाँ-
1)ये नदियाँ मुख्य रूप से हिमालय पर्वत क्षेत्र के हिमाच्छादित भागों से निकलती है।
2)यह सदा वाहिनी नदियाँ हैं जिन्हें हिमनद तथा वर्षा से जल प्राप्त होता है।
3)हिमालयी नदियाँ पूर्ववर्ती तथा अनुवर्ती हैं।
4)यह नदियांँ उबड़- खाबड़ पर्वतों से गुजरते हुए लंबा मार्ग तय करती हैं और विसर्प बनाती हैं।
5)बड़े जल ग्रहण क्षेत्र के साथ ये विशाल नदी द्रोणियाँ बनाती हैं।
6)युवा तथा क्रियाशील नदियाँ हैं जो अपनी घाटियों को गहरा कर रही हैं।
प्रायद्वीपीय नदियाँ-
1)ये नदियाँ मुख्य रूप से प्रायद्वीपीय पठार तथा मध्य उच्च भूमि क्षेत्र से निकलती है।
2)अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी हैं तथा मानसूनी वर्षा पर निर्भर हैं।
3)प्रायद्वीपीय नदियांँ अध्यारोपित तथा पुनर्युवनित नदियाँ हैं।
4)यह नदियांँ सुसमायोजित घाटियों के साथ छोटे तथा निश्चित मार्ग पर बहती हैं।
5)जल ग्रहण क्षेत्र छोटा होने के कारण इन नदियों की द्रोणी अपेक्षाकृत छोटी है।
6)यह प्रौढ़ नदियाँ हैं जो अपने आधार तल तक जा पहुंँची हैं।




उत्तर- हिमालय के गिरिपद के साथ-साथ हरिद्वार(उत्तराखंड) से सिलीगुड़ी(पश्चिम बंगाल) तक यात्रा करते समय हमारे मार्ग में अनेक नदियाँ आती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख नदियांँ निम्नलिखित हैं-
1) गंगा नदी
2) शारदा या सरयू नदी
3) रामगंगा नदी
4) गोमती नदी
5) घाघरा नदी
6) गंडक नदी
7) कोसी नदी
8) महानंदा नदी
गंगा नदी-गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी है। अपनी द्रोणी और सांस्कृतिक महत्व दोनों के दृष्टिकोण से गंगा भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी है। इस नदी से संबंधित प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं- 1) यह नदी उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में गोमुख के निकट गंगोत्री हिमनद से 3900 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। यहांँ यह भागीरथी के नाम से जानी जाती हैं।
2) गंगा की दूसरी धारा अलकनंदा का स्रोत बद्रीनाथ के ऊपर सतोपथ हिमनद है।
3) देवप्रयाग में भागीरथी धारा अलकनंदा से मिलती है और इसके बाद यह गंगा नाम धारण करती है।
4) गंगा नदी हरिद्वार के पास मैदान में प्रवेश करती हैं।
5) यहाँ से यह पहले दक्षिण की ओर, फिर दक्षिण पूर्व की ओर और फिर पूर्व की ओर बहती है अंत में यह दक्षिणमुखी हो कर दो धाराओं भागीरथी-हुगली और पदमा में विभाजित हो जाती हैं।
6) इनमें से पदमा बांग्लादेश में प्रवेश करती है और भागीरथी- हुगली धारा पश्चिम बंगाल में से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
7) भारत में इस नदी की कुल लंबाई 2525 किलोमीटर है। इसमें से उत्तराखंड में 110 किलोमीटर, उत्तर प्रदेश में 1450 किलोमीटर, बिहार में 445 किलोमीटर और पश्चिम बंगाल में 520 किलोमीटर मार्ग तय करती है।
8) गंगा नदी द्रोणी भारत में लगभग 8.6 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है जो भारत का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र है।
9) गंगा की प्रमुख सहायक नदियों की बात करें तो राम गंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी, महानंदा इसके बाएँ किनारे की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। वहीं दाहिने किनारे की ओर से सोन तथा यमुना प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।10) गंगा नदी के संरक्षण के लिए वर्तमान में नमामि गंगे परियोजना (जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित) चलाई जा रही है। जिसके दो उद्देश्य हैं-(क) नदी प्रदूषण के प्रभाव को कम करना तथा (ख) नदी का संरक्षण और कायाकल्प को पूरा करना।