अभ्यास के सभी प्रश्नोत्तर
निम्न में से किसने सर्वप्रथम यूरोप,अफ्रीका व अमेरिका के साथ स्थित होने की संभावना व्यक्त की?
(क) अल्फ्रेड वेगनर
(ख) अब्राहम आरटेलियस
(ग) एंटोनियो पेलेग्रिनी
(घ) एडमंड हैस
उत्तर-(ख) अब्राहम आरटेलियस
(क) पृथ्वी का परिक्रमण
(ख) पृथ्वी का घूर्णन
(ग) गुरुत्वाकर्षण
(घ) ज्वारीय बल
उत्तर-(ख) पृथ्वी का घूर्णन
(क) नजका
(ख) फिलीपीन
(ग) अरब
(घ) अंटार्कटिक
उत्तर-(घ) अंटार्कटिक
(क) मध्य महासागरीय कटकों के साथ ज्वालामुखी क्रियाएँ
(ख) महासागरीय नितल की चट्टानों में सामान्य व उत्क्रमण चुंबकत्व क्षेत्र की पट्टियों का होना
(ग) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्म का वितरण
(घ) महासागरीय तल की चट्टानों की आयु
उत्तर-(ग) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्म का वितरण
(क) महासागरीय – महाद्वीपीय अभिसरण
(ख) अपसारी सीमा
(ग) रूपांतर सीमा
(घ) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण
उत्तर- (घ) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण
(I) महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वेगनर ने किन बलों का उल्लेख किया?
उत्तर-वेगनर के अनुसार महाद्वीपों के प्रवाह के लिए दो बल उत्तरदायी थे-1) पोलर या ध्रुवीय फ्लीइंग बल (2)ज्वारीय बल। पोलर या ध्रुवीय फ्लीइंग बल पृथ्वी के घूर्णन से संबंधित है तथा ज्वारीय बल सूर्य और चंद्रमा के आकर्षण से संबंधित है और जिससे महासागरों में ज्वार पैदा होते हैं।
उत्तर- पृथ्वी के भीतर संवहन धाराओं के प्रवाह के लिए उत्तरदायी ताप उत्पत्ति के दो माध्यम हैं- रेडियोधर्मी तत्वों का क्षय और अवशिष्ट ताप। आर्थर होम्स के संवहन-धारा सिद्धांत के अनुसार मैंटल में संवहन धाराओं के आरंभ होने तथा बने रहने के पीछे मुख्य कारण रेडियोएक्टिव पदार्थ हैं। ये धाराएँ रेडियोएक्टिव तत्वों से उत्पन्न ताप भिन्नता से मैंटल भाग में उत्पन्न होती हैं।
उत्तर-प्लेट संचरण के फलस्वरुप तीन प्रकार की प्लेट सीमाएँ बनती हैं-
(1)अपसारी सीमा-
जब दो प्लेट एक दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं और नई पर्पटी का निर्माण होता है तो उन्हें अपसारी प्लेट कहते हैं।
(2)अभिसरण सीमा-
जब एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धँसती है और जहाँ भूपर्पटी नष्ट होती है, वह अभिसरण सीमा कहलाती है।
(3)रूपांतर सीमा-
जहाँ न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही पर्पटी का विनाश होता है, उन्हें रूपांतर सीमा कहते हैं।
उत्तर- भारतीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट की तरफ प्रवाह के दौरान एक प्रमुख घटना घटी- वह थी लावा प्रवाह से दक्कन ट्रैप का निर्माण होना। ऐसा लगभग 6 करोड वर्ष पहले आरंभ हुआ और एक लंबे समय तक यह जारी रहा। उस समय भारतीय उपमहाद्वीप भूमध्य रेखा के निकट था।
(I) महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के पक्ष में दिए गए प्रमाणों का वर्णन करें।
उत्तर-जर्मन मौसमविद् अल्फ्रेड वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत सन 1912 में प्रस्तावित किया। यह सिद्धांत महाद्वीप एवं महासागरों के वितरण से ही संबंधित था।
इस सिद्धांत के अनुसार आज से करोड़ों वर्ष पूर्व सभी महाद्वीप एक विशाल भूखंड के रूप में आपस में जुड़े हुए थे। वेगनर ने इस बड़े विशाल भूखंड को ‘पैंजिया‘ का नाम दिया, जिसका अर्थ है- ‘संपूर्ण पृथ्वी’। यह विशाल भूखंड अपने चारों ओर एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था जिसे वेगनर ने ‘पैंथालासा‘ कहा, जिसका अर्थ होता है- ‘जल ही जल’।
वेगनर के तर्क अनुसार लगभग 20 करोड वर्ष पहले इस बड़े महाद्वीप ‘पैंजिया’, का विभाजन शुरू हुआ। पहले यह दो बड़े भूखंडों लारेशिया(उत्तरी भूखंड) और गोंडवाना लैंड(दक्षिणी भूखंड) में बँटा, जिसके बाद में ये दोनों धीरे-धीरे अनेक छोटे हिस्सों में बँट गए जो आज के महाद्वीप हमें दिखाई देते हैं।
इस सिद्धांत के पक्ष में कई प्रमाण प्रस्तुत किए गए जिनका विवरण इस प्रकार है-
(1) महाद्वीपों में साम्यता-
दक्षिण अमेरिका एवं अफ्रीका की आमने-सामने की तट रेखाएँ ऐसे लगती हैं मानो कभी यह दोनों महाद्वीप आपस में जुड़े हुए हो। 1964 में बुलर्ड द्वारा कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिए अटलांटिक तटों को जोड़ते हुए मानचित्र बनाकर यह साम्यता साबित भी की गई थी।
(2) महासागरों के आर-पार चट्टानों की आयु में समानता-
ब्राजील तट और पश्चिमी अफ्रीका के तट पर 200 करोड़ वर्ष पुरानी चट्टानों की एक पट्टी मिलती है जो आपस में मेल खाती है। दक्षिण अमेरिका एवं अफ्रीका की तट रेखा के साथ पाए जाने वाले आरंभिक समुद्री निक्षेप जुरासिक काल के हैं।इससे पता चलता है कि उस समय से पहले वहाँ महासागर नहीं था।
(3) टिलाइट-
ऐसी अवसादी चट्टानें टिलाइट हैं जो हिमानी निक्षेपण से बनती हैं।भारत,अफ्रीका,मेडागास्कर, अंटार्कटिक और ऑस्ट्रेलिया में इन चट्टानों का मिलना सिद्ध करता है कि कभी यह सभी स्थान आपस में जुड़े हुए रहे होंगे तथा जलवायु भी समान रही होगी। हिमानी निर्मित टिलाइट चट्टानें पुरातन जलवायु तथा महाद्वीपीय विस्थापन के स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
(4)प्लेसर निक्षेप-
घाना तट(अफ्रीका) पर सोने के बड़े निक्षेपों की उपस्थिति व उद्गम चट्टानों की अनुपस्थिति एक आश्चर्यजनक तथ्य है। सोना युक्त शिराएँ ब्राजील में पाई जाती हैं।इससे स्पष्ट होता है कि घाना में मिलने वाले सोने के निक्षेप ब्राजील पठार से उस समय निकले होंगे जब यह दोनों महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे।
(5) जीवाश्म का वितरण-
विशाल महासागर के आर पार यदि हो तो या जीवो की समान प्रजातियां मिलती है तो उनके वितरण की व्याख्या में समस्याएँ उत्पन्न होती है।भारत, मेडागास्कर, अफ्रीका में ‘लेमूर‘ जीव मिलते हैं। इसलिए वैज्ञानिक इन तीनों स्थलखंडों को जोड़कर एक सतत् स्थलखंड ‘लेमूरिया’ की उपस्थिति को स्वीकार करते हैं। समुद्रों के आर-पार समान प्रजातियाँ मिलना इस बात को इंगित करता है कि कभी यह आपस में जुड़े हुए थे। ‘मेसोसारस‘ नामक छोटे रेंगने वाले जीव केवल उथले-खारे पानी में रह सकते थे। इनकी अस्थियाँ केवल दक्षिण अफ्रीका के दक्षिणी केप प्रांत और ब्राजील में इरावर शैल समूह में ही मिलते हैं। ये दोनों स्थान आज एक- दूसरे से 4800 किलोमीटर दूर हैं और इनके बीच एक विशाल महासागर विद्यमान हैं।
उत्तर- महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत व प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत में मूलभूत अंतर निम्नलिखित हैं-
(1) महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत जर्मन मौसमविद् अल्फ्रेड वेगनर द्वारा 1912 में दिया गया जबकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत 1967 में मैक्कैन्जी़, पारकर और मोरगन नामक तीन विद्वानों की देन है।
(2) वेगनर के अनुसार आज से करोड़ों वर्ष पूर्व पृथ्वी के सभी स्थल भाग एक विशाल महाद्वीप जिसे पैंजिया कहा गया, के रूप में आपस में जुड़े हुए थे। इसके विपरीत प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत के अनुसार स्थलमंडल निरंतर गतिशील 7 प्रमुख तथा अन्य गौण प्लेटों से बना है।
(3) महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के अनुसार पैंजिया चारों ओर से एक विशाल महासागर से घिरा हुआ था जिसे पैंथालासा कहा गया। इसके विपरीत प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार महासागर भी अलग-अलग प्लेटों से संबंधित है।
(4) महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के अनुसार केवल महाद्वीप गतिमान है जो पैंजिया के अलग-अलग टुकड़ों के रूप में बने। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी के पूरे इतिहास काल में महाद्वीप किसी ना किसी प्लेट का हिस्सा रहे हैं और प्लेट चलायमान हैं। इसके अनुसार पैंजिया अलग-अलग महाद्वीपीय खंडों के अभिसरण से बना था जो कभी एक या किसी दूसरे प्लेट के हिस्से थे।
(5) वेगनर के अनुसार महाद्वीपों के प्रवाह के लिए दो बल उत्तरदायी थे-1) पोलर या ध्रुवीय फ्लीइंग बल तथा ज्वारीय बल। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत प्लेट संचरण की 3 सीमाएं बतलाता है जिन्हें अपसारी सीमा,अभिसरण सीमा तथा रूपांतर सीमा कहते हैं। प्लेटों की गतिशीलता के लिए वैज्ञानिक मैंटल में संवहन धाराओं के प्रवाह की भूमिका बताते हैं।
(6) जिस समय वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत प्रस्तुत किया था, उस समय अधिकतर वैज्ञानिकों का विश्वास था कि पृथ्वी एक ठोस तथा गति रहित पिंड है। इसके विपरीत प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत ने इस बात पर बल दिया है कि पृथ्वी का धरातल तथा भूगर्भ दोनों ही स्थिर न होकर गतिमान हैं।
उत्तर- महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के उपरांत 1930 के दशक में आर्थर होम्स ने मैंटल भाग में संवहन धाराओं के प्रभाव की संभावना व्यक्त की। होम्स ने तर्क दिया कि पूरे मैंटल भाग में इस प्रकार की धाराओं का तंत्र विद्यमान है। यह उन प्रवाह बलों की व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास था जिसके आधार पर समकालीन वैज्ञानिकों ने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत को नकार दिया।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद महासागरीय अधस्तल के निरूपण अभियान ने महासागरीय उच्चावच संबंधी विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की और यह दिखाया कि महासागरीय तली एक विस्तृत मैदान नहीं है बल्कि उनमें भी उच्चावच पाया जाता है। इनमें कहीं जलमग्न पर्वतीय कटक हैं तो कहीं गहरी खाइयाँ भी हैं। इसके अलावा चट्टानों के पुरा चुंबकीय अध्ययन और महासागरीय तल के मानचित्रण ने कई नई जानकारियाँ प्रस्तुत की-
1) यह भी पता चला कि महासागरीय तली की चट्टानें महाद्वीपों की चट्टानों की तुलना में नई हैं और कहीं भी 20 करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी नहीं है।
2) देखा गया कि मध्य महासागरीय कटकों के साथ ज्वालामुखी उद्गारों से बड़ी मात्रा में लावा निकलता है।
3) गहरी खाइयों में भूकंप के उद्गम अधिक गहराई पर हैं जबकि मध्य महासागरीय कटकों के क्षेत्र में भूकंप उद्गम केंद्र कम गहराई पर विद्यमान हैं।
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हेस ने 1961 में सागरीय अधस्तल विस्तार परिकल्पना प्रस्तुत की। इसके अनुसार महासागरीय अधस्तल का निरंतर विस्तार हो रहा है। इस परिकल्पना के पश्चात विद्वानों की महाद्वीपों व महासागरों के वितरण के अध्ययन में फिर से रुचि पैदा हुई और 1967 में मैक्कैन्जी़, पारकर और मोरगन नामक तीन विद्वानों ने स्वतंत्र रूप से उपलब्ध विचारों को समन्वित कर प्लेट विवर्तनिकी अवधारणा प्रस्तुत की। इस सिद्धांत के अनुसार स्थलमंडल 7 मुख्य प्लेटों तथा कुछ छोटी प्लेटों में विभक्त है। यह प्लेटें चट्टानों के विशाल व अनियमित आकार के खंड है जो महाद्वीपीय व महासागरीय स्थल मंडलों से मिलकर बने हैं। स्थलमंडल में भूपर्पटी एवं ऊपरी मैंटल को शामिल किया जाता है जिस की मोटाई महासागरों में 5 से 100 किलोमीटर तथा महाद्वीपों में लगभग 200 किलोमीटर है। ये प्लेटें दुर्बलता मंडल पर एक दृढ़ इकाई के रूप में क्षैतिज अवस्था में चलायमान है। यह प्लेटें पृथ्वी के पूरे इतिहास काल में लगातार विचरण कर रही हैं जो आज अकाट्य तथ्य है।