अभ्यास के सभी प्रश्नोत्तर
(i)निम्नलिखित में कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(क) भूकंपीय तरंगे
(ख) गुरुत्वाकर्षण बल
(ग) ज्वालामुखी
(घ) पृथ्वी का चुंबकत्व
उत्तर-(ग) ज्वालामुखी
(क) शील्ड
(ख) मिश्र
(ग) प्रवाह
(घ) कुंड
उत्तर-(ग) प्रवाह
(क) ऊपरी और निचले मैंटल
(ख) भूपटल व क्रोड़
(ग) भूपटल व ऊपरी मैंटल
(घ) मैंटल व क्रोड
उत्तर-(ग) भूपटल व ऊपरी मैंटल
(क) ‘P’ तरंगे
(ख) ‘S’ तरंगे
(ग) धरातलीय तरंगें
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर-(क) ‘P’ तरंगे
(I) भूगर्भीय तरंगे क्या है?
उत्तर- भूगर्भिक तरंगे भूकंप उद्गम केंद्र से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अंदरूनी भाग से ऊपर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती है इसलिए इन्हें भूगर्भिक तरंगे कहा जाता है। यह दो प्रकार की होती हैं-
1. P तरंगे या प्राथमिक तरंगें
2. S तरंगे या द्वितीयक तरंगें
उत्तर-भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष स्रोत/साधन निम्नलिखित हैं-
1. खान एवं खदान
2. ड्रिल तथा प्रवेधन परियोजना
3. ज्वालामुखी उद्गार
उत्तर- कुछ ऐसे क्षेत्र जहाँ भूकंप लेखी यंत्र द्वारा कोई भी भूकंपीय तरंग अभिलेखित नहीं होती, ऐसे क्षेत्र को भूकंपीय छायाक्षेत्र कहा जाता है। अध्ययन के दौरान यह देखा जाता है कि भूकंप अधिकेंद्र से 105° तक P तथा S दोनों ही तरंगों का अभिलेखन दर्ज होता है। लेकिन इससे आगे 105° से 145° के बीच दोनों ही तरंगों का अभिलेखन नहीं होता और यह क्षेत्र दोनों प्रकार की तरंगों के लिए छायाक्षेत्र है। 145° से परे केवल P तरंग का अभिलेखन होता है और S तरंगों को अभिलेखित नहीं करते। इससे साफ स्पष्ट है कि भूकंपीय छाया क्षेत्र पृथ्वी की आंतरिक संरचना में अंतर के कारण बनता है क्योंकि P तरंगे ठोस, तरल तथा गैस तीनों माध्यमों से गुजर सकती है जबकि S तरंगे केवल ठोस पदार्थों से ही गुजर सकती है।
उत्तर-भूकंपीय तरंगों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी के लिए कुछ अन्य अप्रत्यक्ष स्रोत निम्नलिखित है-
1. समय-समय पर पृथ्वी पर कुछ उल्कापिंड टूट कर गिरते रहे हैं। इन उल्का पिंडों का अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उनके पदार्थ तथा संरचना पृथ्वी से मिलती-जुलती है।
2. पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण बल में भिन्नता मिलती है जिसे गुरुत्व विसंगति कहा जाता है। गुरुत्व विसंगति हमें भूपर्पटी के पदार्थ के द्रव्यमान के वितरण की जानकारी देती है।
3. चुंबकीय सर्वेक्षण भी भूपर्पटी में चुंबकीय पदार्थ के वितरण की जानकारी देते हैं इसलिए इनका अध्ययन भी महत्वपूर्ण है।
(I) भूकंपीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएं जिनसे होकर यह तरंगे गुजरती हैं।
उत्तर-सभी प्राकृतिक भूकंप स्थलमंडल में ही आते हैं। स्थलमंडल पृथ्वी के धरातल से 200 किलोमीटर तक की गहराई वाले भाग को कहते हैं। भूकंप मापी यंत्र सतह पर पहुंचने वाली भूकंप तरंगों को अभिलेखित करता है। बुनियादी तौर पर भूकंपीय तरंगे दो प्रकार की हैं- भूगर्भिक तरंगे तथा धरातलीय तरंगे।
भूगर्भिक तरंगों को भी दो भागों में बांटा जाता है-प्राथमिक या P तरंगे तथा द्वितीयक या S तरंगे।
इस प्रकार मुख्य रूप से भूकंप के दौरान तीन प्रकार की तरंगे उत्पन्न होती हैं जिन्हें क्रमशः प्राथमिक तरंगे(P), द्वितीयक तरंगे(S) तथा धरातलीय तरंगे(L) कहते हैं। इनमें से प्रत्येक तरंग अपने अलग-अलग गुण धर्म के अनुसार पदार्थों से गुजरते हुए अभिलेखित होती है।
1. P तरंगे गैस, तरल व ठोस तीनों माध्यमों से गुजर सकती हैं। इनके कंपन की दिशा तरंगों की दिशा के समानांतर ही होती हैं जो गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती है। जिससे शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया पैदा होती है।
2. S तरंगे केवल ठोस माध्यमों से ही गुजरती है। ऊर्ध्वाधर तल में तरंगों की दिशा के समकोण पर कंपन पैदा करती हैं। अतः जिस पदार्थ से गुजरती हैं उसमें उभार व गर्त बनाती है।
3. धरातलीय तरंगे धरातल के साथ-साथ चलती हैं। इन तरंगों का वेग अलग-अलग घनत्व वाले पदार्थों से गुजरने पर परिवर्तित हो जाता है। अधिक घनत्व वाले पदार्थों में तरंगों का वेग अधिक होता है।यह भूकंप लेखी यंत्र पर सबसे अंत में अभिलेखित होती हैं। इनसे शैल विस्थापित होती हैं और इमारतें गिर जाती हैं। इसलिए यह तरंगे ज्यादा विनाशकारी होती हैं।
उत्तर- ज्वालामुखी उद्गार के समय जो लावा निकलता है, उसके ठंडा होने से आग्नेय शैल बनती हैं। लावा जब तक धरातल के नीचे रहता है तो वह मैग्मा कहलाता है। लावा का यह जमाव जब धरातल पर पहुंचकर होता है तो इस प्रकार बनी चट्टानों को ज्वालामुखी शैल कहते हैं। किंतु जब यह मैग्मा (लावा) धरातल पर पहुंचने से पहले ही भूपटल के नीचे ही ठंडा होकर जम जाता है, तो इन्हें पातालीय शैल कहा जाता है। ऐसी स्थिति में धरातल के नीचे कई आकृतियाँ बनती हैं जिन्हें अंतर्वेधी आकृतियाँ कहते हैं।
इस प्रकार बनने वाली विभिन्न अंतर्वेधी आकृतियाँ निम्नलिखित हैं-
1. बैथोलिथ- यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है तो इसे बैथोलिथ कहा जाता है। यह प्रायः ग्रेनाइट के बने होते हैं। अनाच्छादन प्रक्रियाओं के द्वारा ऊपरी पदार्थ हट जाने पर ही यह धरातल पर दिखाई देने लगते हैं।
2. लैकोलिथ- गुंबद नुमा विशाल अंतर्वेधी चट्टाने जिनका तल समतल व एक पाइप रूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है, उन्हें लैकोलिथ कहते हैं। यह अधिक गहराई में बनते हैं।
3. लैपोलिथ- जब मैग्मा एक तश्तरी (saucer) के रूप में जम जाता है तो यह लैपोलिथ कहलाता है।
4. फैकोलिथ- कई बार यह लावा का जमाव मोड़ दार अवस्था में चट्टानों के अपनति व अभिनति के रूप में पाया जाता है तो यह फैकोलिथ कहलाते हैं।
5. सिल- क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में मैग्मा का ठंडा होने पर बना रूप सिल या शीट कहलाता है।
6. डाइक- जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण पर होता है और एक दीवार की भांति संरचना में ठंडा हो जाता है तो यह डाईक कहलाता है। पश्चिमी महाराष्ट्र में यह आकृति बहुतायत में पाई जाती है।