","inLanguage":"en-US"},"inLanguage":"en-US"},{"@type":"Question","@id":"https://study4all.fun/11-ch14-exr/#faq-question-1632153273270","position":6,"url":"https://study4all.fun/11-ch14-exr/#faq-question-1632153273270","name":"(ii) महासागर की तरंगे ऊर्जा कहाँ से प्राप्त करती हैं?","answerCount":1,"acceptedAnswer":{"@type":"Answer","text":"उत्तर- महासागरीय जल स्थिर न होकर गतिमान है क्योंकि सूर्य,चंद्रमा और वायु अपने प्रभाव से महासागरीय जल को गति प्रदान करते हैं। तरंगें महासागरीय जल में क्षैतिज गति का उदाहरण है। वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है जिससे तरंगे उत्पन्न होती हैं। वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं तथा ऊर्जा तटरेखा पर निर्मुक्त होती है। ","inLanguage":"en-US"},"inLanguage":"en-US"},{"@type":"Question","@id":"https://study4all.fun/11-ch14-exr/#faq-question-1632153296097","position":7,"url":"https://study4all.fun/11-ch14-exr/#faq-question-1632153296097","name":"(iii) ज्वार -भाटा क्या है ?","answerCount":1,"acceptedAnswer":{"@type":"Answer","text":"उत्तर- चंद्रमा एवं सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के कारण दिन में एक बार या दो बार समुद्र जल के नियतकालिक उठने या गिरने को ज्वार-भाटा कहा जाता है। ज्वार-भाटा महासागरीय जल की ऊर्ध्वाधर गति से संबंधित है। ","inLanguage":"en-US"},"inLanguage":"en-US"},{"@type":"Question","@id":"https://study4all.fun/11-ch14-exr/#faq-question-1632153325317","position":8,"url":"https://study4all.fun/11-ch14-exr/#faq-question-1632153325317","name":"(iv) ज्वार-भाटा उत्पन्न होने के क्या कारण हैं?","answerCount":1,"acceptedAnswer":{"@type":"Answer","text":"उत्तर- ज्वार भाटा के उत्पन्न होने के पीछे दो कारक हैं- (1)चंद्रमा और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल तथा (2) पृथ्वी का अपकेंद्रीय बल। इसमें भी चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल अधिक प्रभावशाली होता है क्योंकि वह पृथ्वी के अधिक निकट है। जब चंद्रमा की तरफ वाले पृथ्वी के भाग पर ज्वार भाटा उत्पन्न होता है तो विपरीत भाग पर चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण उसकी दूरी के कारण कम होता है और वहाँ अपकेंद्रीय बल ज्वार उत्पन्न करता है। ","inLanguage":"en-US"},"inLanguage":"en-US"},{"@type":"Question","@id":"https://study4all.fun/11-ch14-exr/#faq-question-1632153352782","position":9,"url":"https://study4all.fun/11-ch14-exr/#faq-question-1632153352782","name":"(v) ज्वार-भाटा नौसंचालन से कैसे संबंधित है?","answerCount":1,"acceptedAnswer":{"@type":"Answer","text":"उत्तर- ज्वार-भाटा नौसंचालन में मदद करता है। विशेष रूप से ऐसी नदियाँ जो ज्वारनदमुख बनाती हैं, वहाँ ज्वार के समय जल स्तर बढ़ने के कारण नौकाओं और जहाजों को पोताश्रय तक पहुँचने में आसानी होती है। इसी प्रकार उथले समुद्र के किनारे स्थित पत्तन तथा पोताश्रय तक बड़े जहाज ज्वार के समय ही पहुँच पाते हैं। ","inLanguage":"en-US"},"inLanguage":"en-US"},{"@type":"Question","@id":"https://study4all.fun/11-ch14-exr/#faq-question-1632153388201","position":10,"url":"https://study4all.fun/11-ch14-exr/#faq-question-1632153388201","name":"3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए: (I) जल धाराएँ तापमान को कैसे प्रभावित करती हैं? उत्तर-पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान को यह किस प्रकार प्रभावित करती हैं ? ","answerCount":1,"acceptedAnswer":{"@type":"Answer","text":"उत्तर- महासागरीय धाराओं के तापमान के आधार पर गर्म एवं ठंडी जलधारा में वर्गीकृत किया जाता है। (1) ठंडी जलधाराएँ ठंडा जल गर्म क्षेत्रों में लाती हैं। यह दोनों गोलार्धों के निम्न और मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर बहती हैं। उत्तरी गोलार्ध के उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में ये जलधाराएँ महाद्वीपों के पूर्वी तट पर बहती बहती हैं। (2) गर्म जल धाराएँ गर्म जल को ठंडे जल क्षेत्रों में पहुंचाती हैं और प्रायः दोनों गोलार्धों के निम्न और मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर बहती है।उत्तरी गोलार्ध में यह जलधाराएँ उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर बहती है। महासागरीय धाराओं का तापमान पर प्रभाव- (1) महासागरीय जल धाराएँ भी वायुमंडलीय परिसंचरण की भांति गर्म अक्षांशों से ऊष्मा को स्थानांतरित करती हैं। (2) आर्कटिक व अंटार्कटिक क्षेत्रों की ठंडी जलधाराएँ उष्णकटिबंधीय तथा भूमध्य रेखीय क्षेत्रों की तरफ प्रवाहित होती है, जबकि यहाँ की गर्म जलधाराएँ ध्रुवों की तरफ जाती है। (3) उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर ठंडी जलधाराएँ बहती हैं जिससे यहाँ औसत तापमान कम मिलता है और साथ ही दैनिक और वार्षिक तापांतर भी कम होता है। शुष्क क्षेत्र होने के बावजूद यहाँ कोहरा छा जाता है। (4) मध्य व उच्च अक्षांशों में महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर गर्म जल धाराएँ बहती हैं जिसके कारण वहाँ पर एक अलग जलवायु पाई जाती है। इन क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु अपेक्षाकृत कम गर्म तथा शीत ऋतु अपेक्षाकृत मृदु होती है। (5) उष्ण व उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्म जल धाराएँ महाद्वीपों के पूर्वी तटों के समांतर बहती हैं।इसी कारण यहाँ जलवायु गर्म व आर्द्र होती है। (6) जहाँ गर्म व ठंडी जलधाराएँ मिलती हैं, वहाँ आॅक्सीजन की आपूर्ति प्लैंकटन बढ़ाने में सहायक होती है जो मछलियों का प्रमुख भोजन है। उत्तर-पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान पर प्रभाव- उत्तर- पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के पास से गल्फ स्ट्रीम तथा उत्तरी अटलांटिक अपवाह की गर्म धाराएँ प्रवाहित होती है जिसके कारण उच्च अक्षांशीय क्षेत्र होने के बावजूद यहाँ तापमान अधिक नीचे नहीं जाता तथा एक अलग प्रकार की जलवायु पाई जाती है। इन क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु अपेक्षाकृत कम गर्म तथा शीत ऋतु सुहावनी होती हैं। यहाँ वार्षिक तापांतर भी कम मिलता है। उत्तरी अटलांटिक महासागर में लैब्रेडोर की ठंडी धारा तथा गल्फ स्ट्रीम की गर्म धारा के मिलन क्षेत्र के आसपास प्लैंकटन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो मछलियों का प्रमुख भोजन है। इसलिए यहाँ संसार का प्रमुख मत्स्य क्षेत्र भी मिलता है। ","inLanguage":"en-US"},"inLanguage":"en-US"},{"@type":"Question","@id":"https://study4all.fun/11-ch14-exr/#faq-question-1632153426039","position":11,"url":"https://study4all.fun/11-ch14-exr/#faq-question-1632153426039","name":"(ii) जल धाराएँ कैसे उत्पन्न होती हैं ?","answerCount":1,"acceptedAnswer":{"@type":"Answer","text":"उत्तर- महासागरीय जलधाराएँ महासागरों में नदी प्रवाह के समान है। यह निश्चित मार्ग व दिशा में जल के नियमित प्रवाह को दर्शाते हैं। महासागरीय धाराओं के उत्पन्न होने के लिए दो प्रकार के बल कार्य करते हैं। ये इस प्रकार हैं- (1) प्राथमिक बल जो जल की गति को प्रारंभ करता है। तथा (2) द्वितीयक बल जो धाराओं के प्रवाह को नियंत्रित करता है। प्राथमिक बल एवं द्वितीयक बल- प्रमुख बल/कारक, जो धाराओं को प्रभावित करते हैं, वे इस प्रकार हैं- (1) सौर ऊर्जा से जल का गर्म होना- सौर ऊर्जा से गर्म होकर जल फैलता है। यही कारण है कि विषुवत वृत्त के पास महासागरीय जल स्तर मध्य अक्षांशों की अपेक्षा 8 सेंटीमीटर अधिक ऊँचा होता है। इसके कारण बहुत कम प्रवणता उत्पन्न होती है तथा जल का बहाव ढ़ाल से नीचे की तरफ होता है। (2) वायु - महासागर के सतह पर बहने वाली वायु जल को गतिमान करती है। इसी क्रम में वायु एवं पानी की सतह के बीच उत्पन्न होने वाला घर्षण बल जल की गति को प्रभावित करता है। (3) गुरुत्वाकर्षण- गुरुत्वाकर्षण के कारण जल नीचे बैठता है और यह एकत्रित जल दाब- प्रवणता में भिन्नता लाता है। (4) कोरियोलिस बल- कोरियोलिस बल के कारण उत्तरी गोलार्ध में जल की गति की दिशा के दाहिनी तरफ तथा दक्षिणी गोलार्ध में बायीं ओर प्रवाहित होता है तथा उनके चारों और बहाव को वलय कहा जाता है। इनके कारण सभी महासागरों में वृहत् वृत्ताकार धाराएँ उत्पन्न होती हैं। (5) पानी के घनत्व में अंतर- पानी के घनत्व में अंतर महासागरीय जलधाराओं की ऊर्ध्वाधर गति को प्रभावित करता है।अधिक खारा जल कम खारे जल की अपेक्षा ज्यादा सघन होता है।इसी प्रकार ठंडा जल गर्म जल की अपेक्षा अधिक सघन होता है। सघन जल नीचे बैठता है जबकि हल्के जल की प्रवृत्ति ऊपर उठने की होती है जिससे ठंडी तथा गर्म जल धाराएँ गति करती हैं। ","inLanguage":"en-US"},"inLanguage":"en-US"}]}
1. निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर चुनिए – (i) महासागरीय जल की ऊपर एवं नीचे गति किससे संबंधित है- (क) ज्वार (ख) तरंग (ग) धाराएँ (घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(क) ज्वार
(ii). वृहत ज्वार आने का क्या कारण है? (क) सूर्य और चंद्रमा का पृथ्वी पर एक ही दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल (ख) सूर्य और चंद्रमा का एक दूसरे की विपरीत दिशा से गुरुत्वाकर्षण बल (ग) तट रेखा का दंतुरित होना (घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर-(क) सूर्य और चंद्रमा का पृथ्वी पर एक ही दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल
(iii). पृथ्वी और चंद्रमा की न्यूनतम दूरी कब होती है? (क) अपसौर (ख) उपसौर (ग) उपभू (घ) अपभू
उत्तर-(ग) उपभू
(iv). पृथ्वी उपसौर की स्थिति में कब होती है- (क) अक्टूबर (ख) जुलाई (ग) सितंबर (घ) जनवरी
उत्तर-(घ) जनवरी
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए। (I) तरंगे क्या हैं ?
उत्तर- तरंगें वास्तव में ऊर्जा हैं, जल नहीं, जो कि महासागरीय सतह के आर-पार गति करते हैं। तरंगों में जल कण छोटे वृत्ताकार रूप में गति करते हैं। वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती हैं, जिससे तरंगें उत्पन्न होती हैं। तरंगे जल की क्षैतिज गति हैं किंतु तरंगों में जल गति नहीं करता है लेकिन तरंग के आगे बढ़ने का क्रम जारी रहता है।
(ii) महासागर की तरंगे ऊर्जा कहाँ से प्राप्त करती हैं?
उत्तर- महासागरीय जल स्थिर न होकर गतिमान है क्योंकि सूर्य,चंद्रमा और वायु अपने प्रभाव से महासागरीय जल को गति प्रदान करते हैं। तरंगें महासागरीय जल में क्षैतिज गति का उदाहरण है। वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है जिससे तरंगे उत्पन्न होती हैं। वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं तथा ऊर्जा तटरेखा पर निर्मुक्त होती है।
(iii) ज्वार -भाटा क्या है ?
उत्तर- चंद्रमा एवं सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के कारण दिन में एक बार या दो बार समुद्र जल के नियतकालिक उठने या गिरने को ज्वार-भाटा कहा जाता है। ज्वार-भाटा महासागरीय जल की ऊर्ध्वाधर गति से संबंधित है।
(iv) ज्वार-भाटा उत्पन्न होने के क्या कारण हैं?
उत्तर- ज्वार भाटा के उत्पन्न होने के पीछे दो कारक हैं- (1)चंद्रमा और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल तथा (2) पृथ्वी का अपकेंद्रीय बल। इसमें भी चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल अधिक प्रभावशाली होता है क्योंकि वह पृथ्वी के अधिक निकट है। जब चंद्रमा की तरफ वाले पृथ्वी के भाग पर ज्वार भाटा उत्पन्न होता है तो विपरीत भाग पर चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण उसकी दूरी के कारण कम होता है और वहाँ अपकेंद्रीय बल ज्वार उत्पन्न करता है।
(v) ज्वार-भाटा नौसंचालन से कैसे संबंधित है?
उत्तर- ज्वार-भाटा नौसंचालन में मदद करता है। विशेष रूप से ऐसी नदियाँ जो ज्वारनदमुख बनाती हैं, वहाँ ज्वार के समय जल स्तर बढ़ने के कारण नौकाओं और जहाजों को पोताश्रय तक पहुँचने में आसानी होती है। इसी प्रकार उथले समुद्र के किनारे स्थित पत्तन तथा पोताश्रय तक बड़े जहाज ज्वार के समय ही पहुँच पाते हैं।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए: (I) जल धाराएँ तापमान को कैसे प्रभावित करती हैं? उत्तर-पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान को यह किस प्रकार प्रभावित करती हैं ?
उत्तर- महासागरीय धाराओं के तापमान के आधार पर गर्म एवं ठंडी जलधारा में वर्गीकृत किया जाता है। (1) ठंडी जलधाराएँ ठंडा जल गर्म क्षेत्रों में लाती हैं। यह दोनों गोलार्धों के निम्न और मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर बहती हैं। उत्तरी गोलार्ध के उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में ये जलधाराएँ महाद्वीपों के पूर्वी तट पर बहती बहती हैं। (2) गर्म जल धाराएँ गर्म जल को ठंडे जल क्षेत्रों में पहुंचाती हैं और प्रायः दोनों गोलार्धों के निम्न और मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर बहती है।उत्तरी गोलार्ध में यह जलधाराएँ उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर बहती है। महासागरीय धाराओं का तापमान पर प्रभाव- (1) महासागरीय जल धाराएँ भी वायुमंडलीय परिसंचरण की भांति गर्म अक्षांशों से ऊष्मा को स्थानांतरित करती हैं। (2) आर्कटिक व अंटार्कटिक क्षेत्रों की ठंडी जलधाराएँ उष्णकटिबंधीय तथा भूमध्य रेखीय क्षेत्रों की तरफ प्रवाहित होती है, जबकि यहाँ की गर्म जलधाराएँ ध्रुवों की तरफ जाती है। (3) उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर ठंडी जलधाराएँ बहती हैं जिससे यहाँ औसत तापमान कम मिलता है और साथ ही दैनिक और वार्षिक तापांतर भी कम होता है। शुष्क क्षेत्र होने के बावजूद यहाँ कोहरा छा जाता है। (4) मध्य व उच्च अक्षांशों में महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर गर्म जल धाराएँ बहती हैं जिसके कारण वहाँ पर एक अलग जलवायु पाई जाती है। इन क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु अपेक्षाकृत कम गर्म तथा शीत ऋतु अपेक्षाकृत मृदु होती है। (5) उष्ण व उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्म जल धाराएँ महाद्वीपों के पूर्वी तटों के समांतर बहती हैं।इसी कारण यहाँ जलवायु गर्म व आर्द्र होती है। (6) जहाँ गर्म व ठंडी जलधाराएँ मिलती हैं, वहाँ आॅक्सीजन की आपूर्ति प्लैंकटन बढ़ाने में सहायक होती है जो मछलियों का प्रमुख भोजन है। उत्तर-पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान पर प्रभाव- उत्तर- पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के पास से गल्फ स्ट्रीम तथा उत्तरी अटलांटिक अपवाह की गर्म धाराएँ प्रवाहित होती है जिसके कारण उच्च अक्षांशीय क्षेत्र होने के बावजूद यहाँ तापमान अधिक नीचे नहीं जाता तथा एक अलग प्रकार की जलवायु पाई जाती है। इन क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु अपेक्षाकृत कम गर्म तथा शीत ऋतु सुहावनी होती हैं। यहाँ वार्षिक तापांतर भी कम मिलता है। उत्तरी अटलांटिक महासागर में लैब्रेडोर की ठंडी धारा तथा गल्फ स्ट्रीम की गर्म धारा के मिलन क्षेत्र के आसपास प्लैंकटन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो मछलियों का प्रमुख भोजन है। इसलिए यहाँ संसार का प्रमुख मत्स्य क्षेत्र भी मिलता है।
(ii) जल धाराएँ कैसे उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर- महासागरीय जलधाराएँ महासागरों में नदी प्रवाह के समान है। यह निश्चित मार्ग व दिशा में जल के नियमित प्रवाह को दर्शाते हैं। महासागरीय धाराओं के उत्पन्न होने के लिए दो प्रकार के बल कार्य करते हैं। ये इस प्रकार हैं- (1) प्राथमिक बल जो जल की गति को प्रारंभ करता है। तथा (2) द्वितीयक बल जो धाराओं के प्रवाह को नियंत्रित करता है। प्राथमिक बल एवं द्वितीयक बल- प्रमुख बल/कारक, जो धाराओं को प्रभावित करते हैं, वे इस प्रकार हैं- (1) सौर ऊर्जा से जल का गर्म होना- सौर ऊर्जा से गर्म होकर जल फैलता है। यही कारण है कि विषुवत वृत्त के पास महासागरीय जल स्तर मध्य अक्षांशों की अपेक्षा 8 सेंटीमीटर अधिक ऊँचा होता है। इसके कारण बहुत कम प्रवणता उत्पन्न होती है तथा जल का बहाव ढ़ाल से नीचे की तरफ होता है। (2) वायु – महासागर के सतह पर बहने वाली वायु जल को गतिमान करती है। इसी क्रम में वायु एवं पानी की सतह के बीच उत्पन्न होने वाला घर्षण बल जल की गति को प्रभावित करता है। (3) गुरुत्वाकर्षण- गुरुत्वाकर्षण के कारण जल नीचे बैठता है और यह एकत्रित जल दाब- प्रवणता में भिन्नता लाता है। (4) कोरियोलिस बल- कोरियोलिस बल के कारण उत्तरी गोलार्ध में जल की गति की दिशा के दाहिनी तरफ तथा दक्षिणी गोलार्ध में बायीं ओर प्रवाहित होता है तथा उनके चारों और बहाव को वलय कहा जाता है। इनके कारण सभी महासागरों में वृहत् वृत्ताकार धाराएँ उत्पन्न होती हैं। (5) पानी के घनत्व में अंतर- पानी के घनत्व में अंतर महासागरीय जलधाराओं की ऊर्ध्वाधर गति को प्रभावित करता है।अधिक खारा जल कम खारे जल की अपेक्षा ज्यादा सघन होता है।इसी प्रकार ठंडा जल गर्म जल की अपेक्षा अधिक सघन होता है। सघन जल नीचे बैठता है जबकि हल्के जल की प्रवृत्ति ऊपर उठने की होती है जिससे ठंडी तथा गर्म जल धाराएँ गति करती हैं।