अभ्यास के सभी प्रश्नोत्तर
(i) उस तत्व की पहचान करें जो जलीय चक्र का भाग नहीं है-
(क) वाष्पीकरण
(ख) वर्षण
(ग) जलयोजन
(घ) संघनन
उत्तर-(ग) जलयोजन
(क) 2-20 मीटर
(ख) 20-200 मीटर
(ग) 200-2000 मीटर
(घ) 2000-20000 मीटर
उत्तर-(ग) 200-2000 मीटर
(क) समुद्री टीला
(ख) महासागर गंभीर
(ग) प्रवाल द्वीप
(घ) निमग्न द्वीप
उत्तर-(ख) महासागर गंभीर
(क) 10 ग्राम
(ख) 100 ग्राम
(ग) 1000 ग्राम
(घ) 10000 ग्राम
उत्तर-(ग) 1000 ग्राम
(क) हिंद महासागर
(ख) अटलांटिक महासागर
(ग) आर्कटिक महासागर
(घ) प्रशांत महासागर
उत्तर-(ग) आर्कटिक महासागर
(I) हम पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहते हैं?
उत्तर-जल जीवन के लिए आवश्यक घटक है। पृथ्वी के धरातल के 71% भाग पर जल का विस्तार मिलता है। जल की अधिकता के कारण अंतरिक्ष से देखने पर पृथ्वी नीले रंग की नजर आती है। इसलिए पृथ्वी को नीला ग्रह भी कहा जाता है।
उत्तर- यह महासागर का सबसे उथला भाग होता है जिसकी औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है। प्रत्येक महाद्वीप का विस्तृत सीमांत होता है जो अपेक्षाकृत उथले समुद्रों तथा खाड़ियों से घिरा होता है। इनकी औसत चौड़ाई 80 किलोमीटर होती हैं तथा इनकी गहराई 30 मीटर से 600 मीटर तक मिलती है। आर्कटिक महासागर में साइबेरियन शेल्फ़ विश्व में सबसे बड़ा महाद्वीपीय सीमांत है जिसकी औसत चौड़ाई 1500 किलोमीटर है।
उत्तर-यह महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं। अभी तक लगभग 57 गर्तों को खोजा गया है जिनमें से 32 प्रशांत महासागर में 19 अटलांटिक महासागर में एवं 6 हिंद महासागर में है।
1) प्रशांत महासागर में मेरियाना ट्रेंच सबसे गहरा गर्त है जिसमें अवस्थित चैलेंजर डीप की गहराई 11022 मीटर है।
2) अटलांटिक महासागर में प्यूर्टो रिको ट्रेंच सबसे गहरा गर्त है जिस में अवस्थित मिल्वौकी डीप की गहराई 8376 मीटर है।
3) हिंद महासागर में सुंडा ट्रेंच(पुराना नाम जावा ट्रेंच) सबसे गहरा गर्त है जिसकी सर्वाधिक गहराई 7450 मीटर है।
उत्तर- समुद्री सतह से गहराई की ओर जाने पर पहली परत के नीचे मौजूद दूसरी परत को ताप प्रवणता परत (थर्मोक्लाईन) कहा जाता है। इसमें गहराई के बढ़ने के साथ तापमान में तीव्र गिरावट आती है।यहाँ ताप प्रवणता परत (थर्मोक्लाईन) की मोटाई 500 से 1000 मीटर तक होती है।
जल के कुल आयतन का लगभग 90% गहरे महासागर में ताप प्रवणता परत (थर्मोक्लाईन) के नीचे पाया जाता है। इस क्षेत्र में तापमान 0° सेल्सियस पहुँच जाता है।
उत्तर-महासागरों की सतह के जल का औसत तापमान लगभग 27° सेल्सियस होता है। समुद्र में नीचे की ओर जाने पर तापमान की तीन परतें मिलती है।
(क) पहली परत महासागरीय जल की सबसे ऊपरी परत है जो लगभग 500 मीटर मोटी होती है और इसका तापमान 20° सेल्सियस से 25° सेल्सियस के बीच होता है।
(ख) दूसरी परत को ताप प्रवणता परत (थर्मोक्लाईन) कहा जाता है। पहली परत के नीचे स्थित होती है। इसकी मोटाई 500 से 1000 मीटर तक होती है।इसमें गहराई बढ़ने के साथ तापमान में तीव्र गिरावट आती है।
(ग) तीसरी परत बहुत अधिक ठंडी होती है तथा महासागरीय तली तक विस्तृत होती है।
महासागरों का उच्चतम तापमान सदैव उनकी ऊपरी सतहों पर होता है क्योंकि वह सूर्य की ऊष्मा को प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करते हैं और यह ऊष्मा महासागरों के निचले भागों में संवहन प्रक्रिया द्वारा स्थानांतरित होती है। परिणाम स्वरूप गहराई के साथ-साथ तापमान में कमी आने लगती है। हालांकि तापमान के घटने की दर सभी जगह समान नहीं होती।
उत्तर-समुद्री जल में घुली हुई नमक की मात्रा को लवणता कहा जाता है। इसकी गणना एक किलोग्राम समुद्री जल में घुले हुए नमक की मात्रा द्वारा की जाती है। इसे प्रायः प्रति 1000 भाग (‰) या PPT के रूप में व्यक्त किया जाता है।
(I) जलीय चक्र के विभिन्न तत्व किस प्रकार अंतर- संबंधित हैं?
उत्तर- वायु के बाद जल पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए सबसे आवश्यक तत्व है।जल एक चक्रीय संसाधन है जिसका प्रयोग व पुनः उपयोग किया जा सकता है।
1) जलीय चक्र पृथ्वी पर, इसके नीचे व पृथ्वी के ऊपर वायुमंडल में जल के संचरण की व्याख्या करता है।
2) जलीय चक्र पृथ्वी के जलमंडल में विभिन्न रूपों-ठोस, तरल और गैस में जल का परिसंचरण है।
3) जल एक चक्र के रूप में महासागर से धरातल पर और धरातल से महासागर तक पहुँचता है। इसका संबंध महासागरों, वायुमंडल, भूपृष्ठ, अधःस्थलों के बीच जल के आदान-प्रदान से भी है।
4) जलीय चक्र करोड़ों वर्षों से कार्यरत है और पृथ्वी पर सभी प्रकार का जीवन इसी पर निर्भर करता है।
5) पृथ्वी पर जल का वितरण असमान है। कुछ क्षेत्रों में जल की प्रचुरता है जबकि बहुत से क्षेत्रों में यह सीमित मात्रा में उपलब्ध है।
उत्तर-महासागरीय जल भूमि की तरह सौर ऊर्जा के द्वारा गर्म होते हैं। जमीन की तुलना में जल के तापन व शीतलन की प्रक्रिया धीमी होती है। महासागरों का उच्चतम तापमान उनकी ऊपरी सतहों पर होता है क्योंकि वह सूर्य की ऊष्मा को प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करते हैं। जबकि गहराई की ओर जाने पर तापमान में कमी आती है। 200 मीटर की गहराई तक तापमान बहुत तेजी से गिरता है और उसके बाद तापमान के घटने की दर कम होती जाती है।
महासागरीय जल के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक निम्नलिखित हैं-
1)अक्षांश-
विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर सूर्यातप की मात्रा घटने के कारण महासागरों के सतही जल का तापमान विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता चला जाता है।
2) जल एवं स्थल का असमान वितरण-
उत्तरी गोलार्ध के महासागर दक्षिणी गोलार्ध के महासागरों की अपेक्षा स्थल के बहुत बड़े भाग से जुड़े होने के कारण अधिक मात्रा में ऊष्मा प्राप्त करते हैं।
3) सनातन पवनें-
स्थल से महासागरों की ओर बहने वाली अपने महासागरों के सतही गर्म जल को तट से दूर धकेल देती हैं जिससे नीचे का ठंडा जल ऊपर आ जाता है और तापमान में देशांतरीय अंतर आता है। इसके विपरीत अभितटीय पवनें गर्म जल को तट पर जमा कर देती हैं और इससे तापमान बढ़ जाता है।
4) महासागरीय धाराएँ-
गर्म महासागरीय धाराएँ ठंडे क्षेत्रों में तापमान को बढ़ा देती हैं जबकि ठंडी धाराएँ गर्म महासागरीय क्षेत्रों में तापमान को घटा देती हैं। उदाहरण- गल्फ स्ट्रीम की गर्म जलधारा उत्तर अमेरिका के पूर्वी तट तथा यूरोप के पश्चिमी तट के तापमान को बढ़ा देती है। इसके विपरीत लेब्रेडोर की ठंडी धारा उत्तर अमेरिका के उत्तर- पूर्वी तट के समीप तापमान को कम कर देती है।