Geography

अध्याय 9- वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

अभ्यास के सभी प्रश्नोत्तर

1. निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर चुनिए –
(i). यदि धरातल पर वायुदाब 1000 मिली बार है तो धरातल से 1 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुदाब कितना होगा ?
(क) 700 मिलीबार
(ख) 900 मिलीबार
(ग) 1100 मिलीबार
(घ) 1300 मिलीबार

उत्तर-(ख) 900 मिलीबार

(ii). अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र प्रायः कहाँ होता है ?
(क) विषुवत वृत्त के निकट
(ख)  कर्क रेखा के निकट
(ग) मकर रेखा के निकट
(घ)  आर्कटिक वृत्त के निकट

उत्तर-(क) विषुवत वृत्त के निकट

(iii). उत्तरी गोलार्ध में निम्न वायुदाब के चारों और पवनों की दिशा क्या होगी ?
(क) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के अनुरूप
(ख) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत
(ग) समदाब रेखाओं के समकोण पर
(घ) समदाब रेखाओं के समानांतर

उत्तर-(ख) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत

(iv).वायुराशियों के निर्माण के उद्गम क्षेत्र निम्नलिखित में से कौन सा है?
(क) विषुवतीय वन
(ख) साइबेरिया का मैदानी भाग
(ग) हिमालय पर्वत
(घ) दक्कन पठार

उत्तर-(ख) साइबेरिया का मैदानी भाग

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।
(I) वायुदाब मापने की इकाई क्या है? मौसम मानचित्र बनाते समय किसी स्थान के वायुदाब को समुद्र तल तक क्यों घटाया जाता है ?

उत्तर-वायुदाब को मापने की इकाई मिलीबार है। वायदा मापने के लिए पारद वायुदाबमापी अथवा निर्द्रव बैरोमीटर का प्रयोग किया जाता है।
  माध्य समुद्रतल से वायुमंडल की अंतिम सीमा तक एक इकाई क्षेत्रफल के वायु स्तंभ के भार को वायुमंडलीय दाब कहते हैं।
       वायुदाब पर ऊँचाई के प्रभाव को दूर करने और तुलनात्मक बनाने के लिए वायुदाब मापने के बाद इसे समुद्र तल के स्तर पर घटा लिया जाता है तथा समुद्र तल पर वायुदाब वितरण मौसम मानचित्र में दिखाया जाता है।

(ii) जब दाब प्रवणता बल उत्तर से दक्षिण दिशा की तरफ हो अर्थात उपोष्ण उच्च दाब से विषुवत वृत्त की ओर हो तो उत्तरी गोलार्ध में उष्ण कटिबंध में पवनें उत्तर- पूर्वी क्यों होती है?

उत्तर-पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल कोरिऑलिस बल कहलाता है जिसके प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिनी तरफ तथा दक्षिणी गोलार्ध में बाईं तरफ विक्षेपित हो जाती है। यही कारण है कि उत्तरी गोलार्ध में उष्ण कटिबंध में पवनों की दिशा उत्तर की बजाए उत्तर- पूर्वी हो जाती है।

(iii) भूविक्षेपी पवनें क्या हैं?

उत्तर-पृथ्वी की सतह से दो-तीन किलोमीटर की ऊँचाई पर ऊपरी वायुमंडल में पवनें धरातलीय घर्षण के प्रभाव से मुक्त होती है और मुख्यतः दाब प्रवणता तथा कोरिऑलिस बल से नियंत्रित होती है।
 जब समदाब रेखाएँ सीधी हो और घर्षण का प्रभाव न हो तो दाब प्रवणता बल कोरिऑलिस बल से संतुलित हो जाता है जिसके फलस्वरूप पवनें समदाब रेखाओं के समानांतर बहती है यह पवने भूविक्षेपी(geostrophic) पवनें कहलाती हैं।

(iv) समुद्र व स्थल समीर का वर्णन करें।

उत्तर-स्थल व समुद्र समीर स्थानीय पवनें है जो समुद्र तटीय क्षेत्रों में प्रवाहित होती हैं। 
समुद्र समीर
दिन के समय स्थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं। अतः स्थल पर हवाएं ऊपर उठाती है और निम्न दाब क्षेत्र बनता है जबकि समुद्र अपेक्षाकृत ठंडे रहते हैं और उन पर उच्च वायुदाब बना रहता है। इससे समुद्र से स्थल की ओर दाब प्रवणता उत्पन्न होती है और पवनें समुद्र से स्थल की तरफ समुद्र समीर के रूप में प्रवाहित होती हैं।

 
स्थल समीर एवं समुद्र समीर

स्थल समीर-
रात्रि में प्रक्रिया इससे विपरीत होती है। स्थल समुद्र की अपेक्षा जल्दी ठंडा हो जाता है जबकि समुद्रों पर तापमान अधिक होने के कारण निम्न वायुदाब होता है। दाब प्रवणता स्थल से समुद्र की ओर होने पर स्थल समीर प्रवाहित होती है।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:
(I) पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक बताएँ?

उत्तर-वायुदाब में अंतर होने के कारण वायु गतिमान होती है। इस क्षैतिज गतिज वायु को पवन कहते हैं। पवनें उच्च वायुदाब से कम वायुदाब की ओर प्रवाहित होती हैं। पवनों की दिशा तथा वेग को कई बल प्रभावित करते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज पवनें तीन संयुक्त प्रभावों का परिणाम है।
1) दाब-प्रवणता बल
       दूरी के संदर्भ में वायुदाब परिवर्तन की दर दाब-प्रवणता है। दाब-प्रवणता में अंतर एक बल उत्पन्न करता है। जब समदाब रेखाएँ पास- पास हो तो वहाँ दाब-प्रवणता अधिक तथा समदाब रेखाओं के दूर-दूर होने पर दाब-प्रवणता कम होती है।

2)घर्षण बल
      यह पवनों की गति को प्रभावित करता है। धरातल पर घर्षण सर्वाधिक होता है और इसका प्रभाव आमतौर पर धरातल से एक से तीन किलोमीटर की ऊँचाई तक होता है। समुद्र सतह पर घर्षण न्यूनतम होता है। 

3)कोरिऑलिस बल
    पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल कोरिऑलिस बल कहलाता है जिसके प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिनी तरफ तथा दक्षिणी गोलार्ध में बाईं तरफ विक्षेपित हो जाती है। यह ध्रुवों पर सर्वाधिक तथा विषुवत् वृत्त पर शून्य होता है। जितनी अधिक दाब-प्रवणता होगी, पवनों का वेग उतना ही अधिक होगा और पवनों की दिशा उतनी ही अधिक विक्षेपित होगी।

    इसके अतिरिक्त गुरुत्वाकर्षण बल पवनों को नीचे प्रवाहित करता है।

(ii) पृथ्वी पर वायुमंडलीय सामान्य परिसंचरण का वर्णन करते हुए चित्र बनाएँ। 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब के संभव कारण बताएँ?

उत्तर-वायुमंडलीय पवनों के प्रवाह प्रारूप को वायुमंडलीय सामान्य परिसंचरण भी कहा जाता है। यह वायुमंडलीय परिसंचरण महासागरीय जल को भी गतिमान करता है। वायुमंडल में बड़े पैमाने पर चलने वाली पवनें धीमी तथा अधिक गति की महासागरीय धाराओं को प्रवाहित करती हैं। महासागर वायु को ऊर्जा व जलवाष्प प्रदान करते हैं जो पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करता है।

    
सामान्य परिसंचरण

उच्च सूर्यातप व निम्न वायुदाब होने से अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र(ITCZ) पर वायु संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है। उष्ण कटिबंध से आने वाली पवनें  इस निम्न दाब क्षेत्र में अभिसरण करती हैं। अभिसरित वायु संवहन कोष्ठों के साथ ऊपर उठती है और फिर ध्रुवों की तरफ प्रवाहित होती है। इसके परिणाम स्वरूप लगभग 30° उत्तर व 30° दक्षिण अक्षांश पर वायु एकत्रित हो जाती है। इस एकत्रित वायु का अवतलन होता है और उपोष्ण उच्च वायुदाब बनाता है। अवतलन का एक कारण यह है कि जब वायु 30° उत्तर व 30° दक्षिण अक्षांश पर पहुंचती है तो यह ठंडी हो जाती है। धरातल के निकट वायु का अपसरण होता है और यह विषुवत वृत्त की ओर पूर्वी पवनों के रूप में बहती है। विषुवत वृत्त के दोनों तरफ से प्रवाहित होने वाली पूर्वी पवनें अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र(ITCZ) पर मिलती हैं। 

(iii) उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति केवल समुद्रों पर ही क्यों होती है?उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के किस भाग में मूसलाधार वर्षा होती है और उच्च वेग की पवनें चलती हैं और क्यों?

उत्तर -उष्णकटिबंधीय चक्रवात आक्रामक तूफान है जिनकी उत्पत्ति उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के महासागरों पर होती है और यह तटीय क्षेत्र की तरफ गतिमान होते हैं। इनकी उत्पत्ति एवं विकास के लिए अनुकूल स्थितियाँ निम्नलिखित हैं-

1)विशाल समुद्री सतह जहाँ तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो।
2) कोरिऑलिस बल का उपस्थित होना।
3) ऊर्ध्वाधर पवनों की गति में अंतर होना।
 4) कमजोर निम्न दाब क्षेत्र  होना।
5) समुद्री तल तंत्र पर ऊपरी अपसरण।

 चक्रवातों को और अधिक विध्वंस करने वाली ऊर्जा संघनन प्रक्रिया द्वारा ऊँचे कपासी स्तरी मेघों से प्राप्त होती है जो इस तूफान के केंद्र को घेरे होती है। समुद्री से लगातार आर्द्रता की आपूर्ति से यह तूफान अधिक प्रबल होते हैं।

 स्थल पर पहुंचकर आर्द्रता की आपूर्ति रुक जाती है और यह क्षीण होकर समाप्त हो जाते हैं।
       वह स्थान जहां से उष्णकटिबंधीय चक्रवात तट को पार करके जमीन पर पहुँचते हैं, चक्रवात का लैंडफॉल कहलाता है।

 एक विकसित उष्णकटिबंधीय चक्रवात की विशेषता इसके केंद्र के चारों तरफ प्रबल सर्पिल पवनों का परिसंचरण है, जिसे इसकी आँख (eye) कहा जाता है। इसका केंद्रीय (अक्षु) क्षेत्र शांत होता है, जहां पवनों का अवतलन होता है। अक्षु के चारों ओर अक्षुभित्ति होती है जहाँ वायु का प्रबल व वृत्ताकार रूप में आरोहण होता है। 

     इसी क्षेत्र में पवनों का वेग अधिकतम होता है जो 250 किलोमीटर प्रति घंटा तक होता है। इन चक्रवातों से मूसलाधार वर्षा होती है।  इन चक्रवातों का व्यास  600 से 1200 किलोमीटर के बीच होता है और यह परिसंचरण प्रणाली धीमी गति से 300 से 500 किलोमीटर प्रति दिन की दर से आगे बढ़ते हैं। यह चक्रवात तूफान तरंग उत्पन्न करते हैं और तटीय निम्न इलाकों को जलप्लावित  कर देते हैं। यह तूफान स्थल पर धीरे-धीरे क्षीण होकर समाप्त हो जाते हैं।

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